कविता हमें रच रही है या फिर हम उसको। कविता हमें रच रही है या फिर हम उसको।
नम होती आँखें छिपाए मुस्कुराहट के वो आँसू कहलायें। नम होती आँखें छिपाए मुस्कुराहट के वो आँसू कहलायें।
रीतियाँ नश्वर जगत की यों निभाना चाहिए , चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए । रीतियाँ नश्वर जगत की यों निभाना चाहिए , चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।
जब खून का रंग एक है ,जरूरत पड़े तब मज़हब नहीं देखता खून फिर भी इंसान खून में फर्क करता श्रेश्ठता के न... जब खून का रंग एक है ,जरूरत पड़े तब मज़हब नहीं देखता खून फिर भी इंसान खून में फर्क...
जैसे बारिश में हो एक भीगता जिया हो………बेटी-दामाद को देख तो ऐसा लगा जैसे बारिश में हो एक भीगता जिया हो………बेटी-दामाद को देख तो ऐसा लगा
कृष्ण सुदामा जैसी, दोस्ती करो। कृष्ण सुदामा जैसी, दोस्ती करो।